Karwachauth 2024
करवा चौथ (Karwachauth) एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जिसे मुख्य रूप से उत्तर भारत में महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए मनाती हैं। यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है। करवा चौथ (Karwachauth) का व्रत इस वर्ष 20 अक्टूबर 2024 को मनाया जा रहा है. इस दिन, विवाहित महिलाएं पूरे दिन बिना जल और अन्न ग्रहण किए व्रत रखती हैं और चंद्रमा की पूजा करने के बाद अपना उपवास तोड़ती हैं।
लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि इस बार 21 मिनट के लिए भद्रा का प्रभाव भी इस व्रत पर रहेगा। धर्म आचार्यों की मानें तो अगर आप इन 12 नामों को सुनकर या जाप करके अपने करवाचौथ व्रत को शुरू करते हैं तो आप भद्रा के अशुभ प्रभाव से बच सकते हैं. इसलिए मां गौरी से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए, प्रत्येक विवाहित महिला को यह 12 नाम सुनने चाहिए. Click here to Listen
करवाचौथ (Karwachauth) के व्रत की शुरुआत सुबह सूर्योदय से पहले होती है। व्रतधारी महिलाएं सरगी खाती हैं, जो उनकी सास द्वारा दी जाती है। सरगी में फलों, मिठाइयों, सूखे मेवों और पकवानों का विशेष महत्व होता है। सरगी खाने के बाद महिलाएं पूरे दिन जल और अन्न ग्रहण नहीं करतीं और इस दौरान ईश्वर से अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं.
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करवा चौथ (karva chauth) के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, जिसमें सुंदर वस्त्र, गहने, चूड़ियाँ, बिंदी और सिंदूर का विशेष महत्व होता है। संध्या समय महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती हैं, जिसमें भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
इस पूजा के बाद महिलाएं करवा ( मिट्टी या चांदी का बर्तन ) में जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और फिर अपने पति के हाथों से पानी पीकर व्रत का पारण करती हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देते समय इस मंत्र को करना या सुनना चाहिए.
इस व्रत का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। इसे नारी शक्ति और वैवाहिक संबंधों के प्रति निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। करवा चौथ (Karwachauth) के पीछे एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है, जिसमें सात भाइयों की प्यारी बहन ने अपने पति की मृत्यु के बाद भी अपने प्रेम और समर्पण के बल पर उसे पुनः जीवित कर लिया था। इसलिए इस व्रत को प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
आज के समय में, करवा चौथ न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह आधुनिक समाज में भी एक विशेष स्थान रखता है। आज की महिलाएं इस पर्व को धूमधाम से मनाती हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से इसे साझा करती हैं। यह पर्व पति-पत्नी के बीच के संबंध को और भी मजबूत बनाता है और परिवार में खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
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करवा चौथ का यह व्रत भारतीय संस्कृति में नारी के समर्पण और प्रेम की अनूठी मिसाल है, जिसे हर विवाहित महिला पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाती है।
करवाचौथ की साहुकार वाली कथा (karwachauth katha)
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। उसका नाम करवा था। साहूकार की बेटी की शादी हो गई थी, और वह अपने ससुराल में रहती थी। करवा चौथ के दिन करवा अपने मायके आई और वहां उसने करवा चौथ का व्रत रखा।
रात के समय जब सभी भाई खाना खाने बैठे, तो उन्होंने अपनी बहन से भी खाने का आग्रह किया। लेकिन करवा ने कहा, “मैंने करवा चौथ का व्रत रखा है, और जब तक चंद्रमा को देख कर अर्घ्य नहीं दे दूंगी, तब तक मैं भोजन नहीं करूंगी।”
करवा के छोटे भाइयों से बहन की भूख प्यास देखी नहीं गई, और उन्होंने एक तरकीब सोची। भाइयों ने एक पेड़ पर दीपक जलाया और छल से करवा को बताया कि चंद्रमा निकल आया है। करवा ने भाइयों की बात पर विश्वास कर लिया और दीपक को ही चंद्रमा मानकर अर्घ्य देकर व्रत तोड़ दिया और भोजन कर लिया।
जब करवा ने भोजन किया तो कुछ समय बाद उसे अपने पति की गंभीर बीमारी की सूचना मिली। वह दुखी हो गई और समझ गई कि उसने अपने व्रत को अधूरा और असत्य रूप से तोड़ा है। पश्चाताप करते हुए करवा ने भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की उपासना की और करवा चौथ का व्रत विधिपूर्वक करने का संकल्प लिया। इस बार उसने पूरी श्रद्धा और सच्चाई से व्रत किया। उसके बाद उसकी भक्ति और तप से उसका पति स्वस्थ हो गया और उन्हें आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
मां गौरी जिस प्रकार आपने करवा की मनोकामना पूर्ण की. उसके पति को स्वस्थ एवं दीर्घायु किया इसी प्रकार हमारे ऊपर भी अपना आशीर्वाद रखना और हमारे पति को भी स्वस्थ एवं दीर्घायु करना .
इस तरह करवा ने अपनी सच्ची श्रद्धा और विश्वास से अपने पति के जीवन की रक्षा की और तभी से करवा चौथ (Karwachauth) का व्रत महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र के लिए किया जाने लगा।