Aditya Hridaya Stotra
आदित्य ह्रदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra),अगस्त्य ऋषि द्वारा दिया गया तथा वाल्मीकि जी ने अपनी वाल्मीकि रामायण में इसको संकलित किया है। जब रावण से युद्ध करते समय भगवान श्री राम कुछ चिंतित होने लगे, अपनी विजय को लेकर उनका आत्मविश्वास थोड़ा डिगने लगा, उस समय अगस्त्य ऋषि ने भगवान श्रीराम को इस स्तोत्र के बारे में बताया था।
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आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra) वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड का 105 वां सर्ग है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार “आदित्य हृदय स्तोत्र” अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् श्री राम को युद्ध में रावण पर विजय प्राप्ति हेतु दिया गया था। आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ जीवन के अनेक कष्टों का एकमात्र निवारण है।
इसके नियमित पाठ से मानसिक कष्ट, हृदय रोग, तनाव, शत्रु कष्ट और असफलताओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है। इस स्तोत्र में सूर्य देव की निष्ठापूर्वक उपासना करते हुए उनसे विजयी मार्ग पर ले जाने का अनुरोध है।
आदित्य हृदय स्तोत्र सभी प्रकार के पापों , कष्टों और शत्रुओं से मुक्ति कराने वाला, सर्व कल्याणकारी, आयु, ऊर्जा और प्रतिष्ठा बढाने वाला अति मंगलकारी विजय स्तोत्र है। किसी विशिष्ट कार्य की (इंटरव्यू , मुकदमा आदि के लिए जाते समय) सफलता के लिए, श्री आदित्य हृदय स्तोत्र का तीन बार पाठ करें।
आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ (Aditya Hridaya Stotra Lyrics):
श्री आदित्य हृदय स्तोत्र (शुद्ध उच्चारण में) सुनें : वीडियो सुनें
विनियोग: ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषिरनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो । भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः ।। ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥ दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥ राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥ आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥ सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥ रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥ सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥ एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥ पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥ आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥ हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥ हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥ व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥ आतपी मण्डली मृत्यु: पिंगल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥ नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥ नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥ जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥ नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तुते ॥18॥ ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥ तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥ तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥ नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥ एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥ देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥ एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥ पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥ अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥ एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥ आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥ रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥ अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥ ।।सम्पूर्ण ।।
आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ करने के फायदे (Aditya Hridaya Stotra Benefits in Hindi):
किसको करना चाहिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ?
- सरकारी नौकरी चाहिए (sarkari naukri ke liye surya mantra) तो नित्य आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- सूर्य देव के समान चमक यश प्राप्त करने के लिए तथा युद्ध अथवा मुकदमों में विजय प्राप्त करने के लिए।
- किसी परीक्षा एवं इंटरव्यू में सफलता के लिए विशेषकर प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षा में सफलता के लिए, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ अमोघ फलदायक है।
- आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra) के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है।
- जिन लोगों को सरकार संबंधी कार्य में परेशानी हो यानी प्रशासन किसी तरह से आपको परेशान कर रहा है अथवा किसी प्रकार का मुकदमा सरकार से चल रहा है।
- नेत्र संबंधी रोग हैं अथवा स्वास्थ्य खराब रहता है।
- पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। उन लोगों के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र बहुत ही फलदायक स्तोत्र है।
- कुंडली में अगर आपके सूर्य शुभ फल नहीं दे रहे हैं, कमजोर हैं तो भी आप निसंकोच आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra) का पाठ कर सकते हैं।
- आदित्य हृदय स्तोत्र सूर्य को बलवान एवं शुभ बनाने के लिए बहुत ही कारगर उपाय है।
- सरल शब्दों में कहें तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra)हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है।
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आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ करने के नियम (Rules for Recitation of Aditya Hridaya Stotra):
1. सूर्योदय के समय (अर्थात् ऊषाकाल में जब सूर्य लाल होते हैं, उदय हो रहे होते हैं) सुबह सुबह स्नान करके सूर्य को प्रणाम करके, जल में गुड़ एवं रोली डालकर अर्घ्य अर्पित करें।
उसके बाद, वहीं सूर्यदेव के सामने खड़े होकर अथवा बैठकर आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद आंखें बंद करके, सूर्य देव का ध्यान करें और अपनी मनोकामना सूर्य देव से पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
2. हो सके तो नित्य आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करें। अगर आप पर रोज समय नहीं है तो केवल रविवार के दिन तो अवश्य ही करें।
3. जो लोग आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कर रहे हैं। वे रविवार के दिन मांसाहार, शराब अथवा तेल का (खासकर सरसों के तेल का) प्रयोग ना करें और अगर संभव हो सके तो सूर्यास्त होने के पश्चात नमक का प्रयोग भी ना करें।
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