Krishna Janmashtami
आपने बहुत बार ऐसा सुना होगा और देखा भी होगा कि जन्माष्टमी (Krishna janmashtami)अक्सर दो दिन की ही पड़ती है। पहले दिन स्मार्त पंथ के लोग जन्माष्टमी मनातें हैं तो दूसरे दिन वैष्णव पंत के लोग जन्माष्टमी मनाते हैं.
इसके लिए बहुत बार आपके मन में यह विचार आता होगा कि आखिर जन्माष्टमी 2 दिन की क्यों मनाई जाती है और स्मार्त एवं वैष्णव में क्या अंतर है!
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स्मार्त एवं वैष्णव में अंतर ( difference between smart and vaishnav) :
वेदों को श्रुति ग्रंथ कहा जाता है अर्थात् जो ज्ञान परमेश्वर से सुनकर जाना गया वह श्रुति ग्रंथ है।
जबकि वेदों को छोड़कर अन्य सभी ग्रंथ पुराण आदि को स्मृति ग्रंथि कहा जाता है। स्मृति का सीधा सा अर्थ है कि जिस ज्ञान को परंपरा अथवा स्मृतियों के आधार पर जाना गया वह ज्ञान स्मृति-ग्रंथों में है!
स्मृति आदि धर्मग्रंथों को मानने वाले और इसके आधार पर व्रत के नियमों का पालन करने वाले स्मार्त कहलाते हैं। जबकि दूसरी ओर, विष्णु के उपासक या विष्णु के अवतारों को मानने वाले वैष्णव कहलाते हैं।
Source : hindi-thequint.com
स्मार्त संप्रदाय के लोग जहां सभी देवी देवताओं को मानते हैं यानी वे शिव, विष्णु, दुर्गा, गणेश, सूर्य देव के उपासक होते हैं। उसी के आधार पर उनके व्रत-त्योहार चलते हैं। वह स्मार्त संप्रदाय के लोग हैं।
वही जो लोग केवल विष्णु भगवान एवं उनके अवतारों को मानते हैं वे वैष्णव हैं।
क्यों होती है स्मार्त एवं वैष्णव की अलग-अलग जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami):
अब आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि यहां तक तो बात समझ में आ गई! लेकिन भगवान कृष्ण का जन्म तो एक ही दिन हुआ था तो फिर जन्माष्टमी यह दोनों अलग-अलग क्यों मनाते हैं! इसका कारण भी हम आपको आगे बताने जा रहे हैं। दरअसल भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तथा रोहिणी नक्षत्र में हुआ था।
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स्मार्तों के जन्माष्टमी (त्योहारों) के लिए पंचांग की गणना का तरीका :
स्मार्त कृष्ण का जन्मोत्सव (Krishna janmashtami) मनाने के लिए कुछ खास योग देखते हैं और उसी के आधार पर व्रत का दिन तय करते हैं। ये योग इस तरह हैं:
1.भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि हो।
2.चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी हो।
3. रात में रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा हो।
यानी इस तरह से देखा जाए तो स्मार्त उदया तिथि (सूर्योदय के समय जो तिथि होती है उसे उदया तिथि कहते हैं) को अधिक महत्व नहीं देते हैं। इसलिए स्मार्त अष्टमी या इन संयोगों के आधार पर सप्तमी को जन्माष्टमी मनाते हैं।
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वैष्णवों का जन्माष्टमी के लिए पंचांग की गणना करने का तरीका :
1.भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि हो।
2. उदयकाल में (सूर्योदय के समय) अष्टमी तिथि हो।
3.अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा हो।
इस नियम पर चलने वालों का उदया तिथि पर जोर होता है, इसलिए ये जन्माष्टमी (Krishna janmashtami)अष्टमी तिथि को मनाते हैं। संयोगवश ये उत्सव नवमी को भी मनाया जा सकता है।
यानी निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि गणना के तरीकों के कारण और कुछ योगों को महत्व देने के कारण ही स्मार्त एवं वैष्णव की जन्माष्टमी अलग-अलग दिन मनाई जाती हैं।
लेकिन यहां यह कहा जा सकता है कि जन्माष्टमी (Krishna janmashtami)भले ही दो अलग-अलग दिन मनाई जाती रही हो लेकिन उत्सव और उल्लास में कभी कोई कमी नहीं होती।भगवान कृष्ण के जन्म के उत्सव को दोनों ही संप्रदाय बड़ी ही हंसी-खुशी और उल्लास से मनाते हैं।भगवान कृष्ण, विष्णु के अवतार हैं। अतः उनकी पूजा अर्चना से सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है इसमें किसी भी संप्रदाय में कोई दो राय नहीं है। सभी लोग इस दिन भगवान कृष्ण का जन्म उत्सव धूमधाम से मनाते हैं। बाल रूप में उनकी पूजा की जाती है। माखन-मिश्री का भोग लगाया जाता है। भगवान का श्रृंगार किया जाता है तथा मंत्रों से उनकी पूजा की जाती है।
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