महालक्ष्मी अष्टक (Mahalakshmi Ashtak) की रचना इंद्रदेव द्वारा की गई है. यह उनकी भावभीनी स्तुति है, जो की मां लक्ष्मी को समर्पित है. इसको पद्म पुराण मे समायोजित किया गया है। जैसा कि हम सभी जानते ही हैं, धार्मिक पुस्तकों के अनुसार, इंद्रदेव को देवताओं के राजा माना जाता है.
देवताओं की राजा होने की नाते उन पर धन एवं वैभव की प्रचुरता है अतः यह मानना गलत नहीं होगा कि मां लक्ष्मी की असीम कृपा उन पर बरसती रहती है. अब ऐसे महान विभूति द्वारा रचित महालक्ष्मी अष्टक के प्रभाव का कहना ही क्या ! जो की साक्षात हमें इंद्रदेव के वैभव में दिखाई देता है.
महालक्ष्मी अष्टक (Mahalakshmi Ashtak) जैसा के नाम से ही व्यक्त है की आठ श्लोक की रचना है . अष्टक के अंत में, प्रतिदिन महालक्ष्मी अष्टक का पाठ का फल बताया गया है.
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनं
जो व्यक्ति महालक्ष्मी अष्टक का पाठ प्रतिदिन एक बार करता है या सुनता है तो उसके बड़े से बड़े पाप भी कट जाते हैं.
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्य समन्वितः
जो व्यक्ति प्रतिदिन महालक्ष्मी अष्टक का पाठ दो बार करता है या सुनता है. वह धन-धान्य से युक्त होता है.
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रूविनाशनं
जो व्यक्ति प्रतिदिन महालक्ष्मी अष्टक का पाठ तीन बार करते हैं अथवा सुनते हैं उनके बड़े से बड़े शत्रुओं का भी विनाश हो जाता है .
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा
मां लक्ष्मी की कृपा उन पर हमेशा बनी रहती है और मां लक्ष्मी उनको प्रसन्न होकर शुभ वरदान देती है.
महालक्ष्मी अष्टक (Mahalakshmi Ashtak) का पाठ बहुत ही प्रभावशाली है अतः अगर आप इसको प्रतिदिन अपनी पूजा में सम्मिलित करते हैं तो इसका चमत्कारी प्रभाव आपको शीघ्र ही देखने को मिल जाएगा .
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Mahalaxmi Ashtakam Benefits (Mahalakshmi Ashtak) :
- आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है.
- जीवन में संघर्ष करने वालों को लाभ मिलता है.
- धन अर्जित करने में मदद मिलती है.
- मां लक्ष्मी की कृपा से आय, सौभाग्य, और धन में बढ़ोतरी होती है.
- महालक्ष्मी अष्टक का पाठ करने से सभी कष्ट दूर होते हैं.
- महालक्ष्मी अष्टक का पाठ करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं.
महालक्ष्मी अष्टक का पाठ करने से लक्ष्मी जी की कृपा बरसती है.
Mahalaxmi Ashtakam Lyrics (Laxmi Ashtakam Lyrics) :
श्री गणेशाय नमः 🙏 नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते । शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥1॥ नमस्ते गरुडा़ रूढे़ कोलासुरभयङ्करि । सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥2॥ सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि । सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥3 ॥ सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि । मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥4॥ आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि । योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥5॥ स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे । महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥6॥ पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि । परमेशि जगन्मातः महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥7॥ श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते । जगत्स्थिते जगन्मातः महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥8॥ महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः । सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥9॥ एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् । द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥10॥ त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् । महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥11॥ || इतिश्री इंद्रकृतं श्री महालक्ष्मी अष्टकम् स्तोत्रं संपूर्णम् ||