गौरी स्तुति रामायण (Jai Jai Girivar Raj Kishori Lyrics in Hindi)
जैसा कि हम सभी जानते ही हैं कि मां सीता ने जब भगवान श्रीराम को पुष्प वाटिका में देखा तो उनके मन में वह मनोहर छवि छप गई और वह वर रूप में उनकी ही कामना करने लगीं (Jai Jai Girivar Raj Kishori Lyrics in Hindi)
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किंतु उन्होंने अपनी मन की बात किसी को भी नहीं बताई और वह सीधे मां गौरी के मंदिर पहुंची और माँ गौरी से अपने मन की बात कहने लगी ‘मोर मनोरथ जानहु नीकें, बसहु सदा उर पुर सबही के’ यह पंक्तियां मां सीता के हृदय की दशा बताने के लिए पर्याप्त हैं. (Jai Jai Girivar Raj Kishori Lyrics in Hindi)
इतने पर भी यह सीता जी की शालीनता और संस्कार के ही लक्षण है कि उन्होंने मन में भगवान श्री राम की छवि होते हुए भी मुख से उनके बारे में स्पष्ट मां गौरी तक से नहीं कहा उनसे केवल इतना ही कहा कि आप सबके मन की बात को जानती है मां गौरी, हे माता मेरी मनोकामना पूर्ण कीजिए..
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वस्तुतः जो प्रार्थना सीता जी ने गौरी मां से उस समय की , वहीं गौरी स्तुति रामायण (Gauri Stuti in Ramayan) के नाम से जानी जाती है.
मां गौरी ने भी अपने भक्त की यह भावपूर्ण प्रार्थना सुनकर, तुरंत ही उन्हें यह आशीर्वाद प्रदान किया ‘बिनय प्रेम बस भई भवानी, खसी माल मुरति मुसुकानि’ कि उनके मन में जो छवी बसी हुई है वहीं उन्हें वर रूप में प्राप्त होगा ‘सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा’ तथा इस प्रकार मां सीता भगवान राम को, वर रूप में पाने का, मां गौरी से आशीर्वाद प्राप्त कर, अपने भवन प्रसन्न अपनी सखियों के साथ के साथ लौट गई. ऐसा तुलसीदास रामायण में वर्णित है.
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यही कारण है कि गौरी स्तुति रामायण , शीघ्र मनोरथ को पूर्ण करने वाली स्तुति मानी जाती है क्योंकि इसका प्रभाव तुरंत लक्षित हुआ और सीता स्वयंवर में भगवान श्रीराम ने धनुर्भंग करके मां सीता से विवाह किया. जोकि है स्पष्ट ही गौरी स्तुति रामायण (Gauri Stuti) के प्रभाव को दर्शाता है.
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Benefits of Gauri Stuti
गौरी स्तुति रामायण (Gauri Stuti in Ramayan) ना केवल विवाह कार्यों (Gauri Stuti for Marriage), चाहे फिर वह लव मैरिज हो या अरेंज्ड मैरिज, के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व फलदायक मानी जाती है बल्कि यह गौरी स्तुति (Gauri Stuti) सभी मनोरथ को पूर्ण करने के लिए फलदायक मानी जाती है.
अगर कोई कन्या अपने मनपसंद जीवनसाथी से विवाह करना चाहती है तो भी यह गौरी स्तुति (Gauri Stuti) अद्भुत है. इसके अतिरिक्त आप अपने विवाह संबंधी मनोरथ पूर्ण करने के लिए इन मंत्रों की भी सहायता ले सकती हैं..👇🏽
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यह स्तुति सभी मनोरथ को पूर्ण करने के लिए फलदायक मानी जाती है, इसका कारण है कि इस स्तुति में मां गौरी के अलावा भगवान भोलेनाथ , श्री गणेश एवं कार्तिकेय जी की भी स्तुति की गई है. जिसके कारण सभी मनोरथ की पूर्ति के लिए यह स्तुति बहुत ही सटीक, फलदायी एवं प्रभावशाली उपाय है.
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इस स्तुति के द्वारा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है, ‘सेवत तोहि सुलभ फल चारी बरदायनी पुरारी पिआरी’ जैसा कि इन पंक्तियों से स्पष्ट ही है..
इसके अतिरिक्त अगर आप पूरी दुर्गा सप्तशती नहीं पढ़ पाते हैं तो केवल गौरी स्तुति करके भी उसके फल को प्राप्त कर सकते हैं.
अगर आप किसी भी मनोरथ के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं तो इस स्तुति को अपनी पूजा में शामिल करें. रोज एक बार तो अवश्य ही करें अगर हो सके तो 11 बार इस स्तुति को करें आपके मनोरथ शीघ्र ही पूर्ण होंगे Click to Listen Gauri Stuti Ramayan
यहां आपकी सुविधा के लिए यह प्रभावशाली गौरी स्तुति ( Gauri ji ki Stuti) शुद्ध उच्चारण में प्रस्तुत की जा रही है इसे आप अपनी पूजा में शामिल कर सकते हैं 👇🏽 ऐसे ही प्रभावशाली मंत्रों को शुद्ध उच्चारण में सुनने के लिए, आप हमारे चैनल को Subscribe कर सकते हैं.
Jai Jai Girivar Raj Kishori Lyrics in Hindi (Gauri Stuti Lyrics)
जय जय गिरिवर राज किसोरी ।
जय महेस मुख चन्द चकोरी ।।
जय गजबदन षडाननमाता ।
जगत जननी दामिनी दुति गाता।।
नहिं तव आदि मध्य अवसाना ।
अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
भव भव विभव पराभव कारिनि ।
विस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।
पति देवता सुतीय महुँ
मातु प्रथम तव रेख
महिमा अमित न सकहिं
कहि सहस सारदा सेष ।।
सेवत तोहि सुलभ फल चारी
बरदायनी पुरारी पिआरी ।।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे ।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे ।।
कीन्हेऊँ प्रगट न कारन तेहीं ।
अस कहि चरन गहे बैदेही ।।
मोर मनोरथु जानहु नीकें ।
बसहु सदा उर पुर सबहीं के ॥
बिनय प्रेम बस भई भवानी ।
खसी माल मूरति मुसकानी ।।
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ ।
बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ ।।
सुनु सिय सत्य असीस हमारी ।
पूजिहिं मनकामना तुम्हारी ।।
नारद बचन सदा सुचि साचा ।
सो बरू मिलिहि जाहिं मनु राचा ।।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो
बरू सहज सुंदर साँवरो ।
करुना निधान सुजान
सीलु सनेह जानत रावरो ।।
एहि भाँति गौरि असीस सुनि
सिय सहित हियँ हरषीं अली ।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि-पुनि
मुदित मन मंदिर चली ।।
जानि गौरि अनुकूल सिय
हिय हरषु न जाय कहि ।
मंजुल मंगल मूल
बाम अंग फरकन लगे ।
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